मनन : प्रवेश श्रीवास्तव

*दर्द कागज़ पर,* 
          *मेरा बिकता रहा,*✍


*मैं बैचैन था,* 
          *रातभर लिखता रहा..*✍


*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*✍


*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपता रहा..*✍


*अकड होती तो,* 
          *कब का टूट गया होता,*✍


*मैं था नाज़ुक डाली,* 
          *जो सबके आगे झुकता रहा..*✍


*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*✍


*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*✍


*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*✍


*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई के सीखता रहा..!!*✍


*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*✍


*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*✍



*🌴कुछ बेतुके झगड़े*, 
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने* l✍


*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने।*✍


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🌹संकलनकर्ता : प्रवेश श्रीवास्तव :8269953333🌹✍