🌹नाव डूबने के बाद नाविक और पांच-सात कुशल तैराक नदी में तैरकर अपनी-अपनी जान बचाये. उधर नाव, सबको नदी में छोड़.. खुद आगे निकल गई। ✍
🌹बचे हुए लोग राजा के दरबार में पेश किये गये - राजा ने नाविक से पूछा-
नाव कैसे डूबी । ✍
🌹नाव में छेद था क्या?✍
🌹नाविक- नहीं महाराज , नाव बिल्कुल दुरुस्त थी। ✍
🌹महाराज - इसका मतलब, तुमने सवारी अधिक बिठाई । ✍
🌹नाविक- नहीं महाराज , सवारी नाव की क्षमतानुसार ही थे और न जाने कितनी बार मैंने उससे अधिक सवारी बिठाकर नाव पार लगाई है। ✍
🌹राजा- आंधी, तूफान जैसी कोई प्राकृतिक आपदा भी तो नहीं थी। ✍
🌹नाविक- मौसम सुहाना तथा नदी भी बिल्कुल शान्त थी महाराज। ✍
🌹राजा- मदिरा पान तो नहीं न किया था तुमने ? ✍
🌹नाविक- नहीं महाराज! आप चाहें तो इन लोगों से पूछ कर संतुष्ट हो सकते हैं यह लोग भी मेरे साथ तैरकर जीवित लौटे हैं। ✍
🌹महाराज- फिर, क्या चूक हुई ? कैसे हुई इतनी बड़ी दुर्घटना ?✍
🌹नाविक- महाराज! नाव हौले-हौले, बिना हिलकोरे लिये नदी में चल रही थी , तभी नाव में बैठे एक आदमी ने नाव के भीतर ही थूक दिया , मैंने पतवार रोक के उसका विरोध भी किया और पूछा कि "तुमने नाव के भीतर क्यों थूका ? "✍
🌹उसने उपहास में कहा कि "क्या मेरे नाव में थूकने से नाव डूब जायेगी। "✍
🌹मैंने कहा- "नाव तो नहीं डूबेगी लेकिन तुम्हारे इस निकृष्ट कार्य से हम शर्म से डूब रहें हैं.. बताओ , जो नाव तुमको अपने सीने पर बिठाकर इस पार से उस पार ले जा रही है तुम उसी में थूक रहे हो। ✍
🌹राजा - फिर ?✍
🌹नाविक - महाराज मेरी इतनी बात पर वो तुनक गया बोला पैसा देते हैं नदी पार करने के, कोई एहसास नहीं कर रहे तुम और तुम्हारी नाव। ✍
🌹राजा (विस्मय के साथ) - पैसा देने का क्या मतलब ! नाव में थूकेगा ? अच्छा! फिर क्या हुआ ?✍
🌹नाविक - महाराज वो मुझसे बहस करने लगा। ✍
🌹राजा - नाव में बैठे बाकी और लोग क्या कर रहे थे ? क्या उन लोगों ने उसका विरोध नहीं किया ?✍
🌹नाविक - महाराज ऐसा नहीं था.. नाव के बहुत से लोग मेरे साथ उसका विरोध करने लगे। ✍
🌹राजा - तब तो उसका मनोबल टूटा होगा और उसको अपनी गलती का एहसास हुआ होगा। ✍
🌹नाविक - ऐसा नहीं था महाराज! नाव में कुछ लोग ऐसे भी थे जो उसके साथ खड़े हो गये तथा नाव के भीतर ही दो खेमे बंट गये , और बीच मझधार में ही यात्री आपस में उलझ पड़े। ✍
🌹राजा - चलती नाव में ही मारपीट ! तुमने उन्हें समझाया तथा रोका नहीं..। ✍
🌹नाविक - रोका महाराज, हाथ जोड़कर विनती भी की. मैने कहा " नाव इस वक्त अपने नाजुक दौर में है, " इस वक्त नाव में तनिक भी हलचल से हम - सबकी जान को खतरा बन जायेगा, लेकिन कौन मेरी सुने ! सब एक दूसरे पर टूट पड़े, तथा नाव ने बीच धारा में ही संतुलन खो दिया महाराज। ✍
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🌹*कहानी का सार*:- इस नाजुक दौर में संतुलन बनाये रखे ताकी नाव के संतुलन खोने से बाकी साथियों को नुकसान न हो।✍
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*इलाज* :- रही बात नाव में थूकने वालो की तो इनसे सारे संपर्क ख़त्म करे जिससे अगली बार नाव में बैठने लायक न रहे।✍
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🌹संकलनकर्ता : प्रवेश श्रीवास्तव 8269953333🌹✍